३०० साल में ही धरती को विनास के कगार पर ला पटका ।

देश कि माटी, देश का जल/हवा देश का फल सरस बने प्रभु सरस बने/देश के घर और देश के घाट देश के वन और देश के बाट/सरल बने प्रभु सरल बने देश के तन और देश देश का मन/देश के घर के भाई-बहन विमल बने प्रभु विमल बने

विश्वविख्यात रविंद्रनाथ ठाकुर रचित और विख्यात हिंदी कवि भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा अनूदित यह गीत आज बरबस याद आता है । इस सच्चाई को सभी मान रहे है कि धरती खतरे में है । मानव सभ्यता धीरे-धीरे गर्त कि ओर धकेली जा रही है । लोग इस आशंका से डरे हुए है कि यदि धधकती धरती को रोका नहीं गया, तो किसी दिन प्रलय आ जायेगा । लोगो को मालूम है कि धरती को बचाने के लिए क्या किया जाना चाहिए११ सितम्बर १९९७ के जापान के शहर टोकियो में हुए ऐसे ही सम्मेलन में यह रूपरेखा बनी थीवाकई ऐसे किसी मसले पर सहमति बना पाना मुश्किल है और यदि बन भी गई, तो उससे धरती बच पायेगी, इसमे संधेह हैक्योंकि जब पानी गले तक पहुचने लगता है, तब उससे बचने के लिए हमारे वैज्ञानिक नये-नये शिगूफे उछालते है बड़े-बड़े सम्मेलन होते है । कभी रियो-दा-जनीरो से पृथ्वी बचाओ कि आवाज उठती है, तो कभी कियोटो में जलवायु परिवर्तन को रोकने कि संधि होती है, तो कभी बाली से इसे लागु करने के लिए एक्शन प्लान जरी होता है । औधोगिकरण से पहले की दुनिया औधोगिकरण न हुआ होता, तो ग्लोबल वार्मिंग भी न हुई होतो । कियोटो में भी वैज्ञानिको ने यह रेखांकित किया था कि दुनिया को महाविनाश से बचने के लिए ग्लोबल वार्मिंग का अधिकतम स्तर पूर्व औधौगिकरण युग से दो डिग्री सेल्सियस अधिक तक ही रखना होगा । इस स्तर पर भी दुनिया १९९० में पहुच गई थी । आज वातावरण में कार्बन-दी-ओक्सएड कि मात्रा ४० प्रतिशत बढ़ चुकी है, जो धरती को रोज-ब-रोज गरमाने के लिए खतरनाक स्तिथि कि ओर बढ़ रही है । इसलिए वर्ष २०५० तक हमें इसमे ५० प्रतीशत तक कि कटौती करनी होगी । ग्लोबल वार्मिंग यानि ग्रीन हाउस गैसों के अतिसय उत्सर्जन के लिए पश्चिम के उन्नत देश मुख्यतया जिम्मेदार रहे हैग्लोबल वार्मिंग से निजात पाने के लिए वैज्ञानिको ने यह सुझाव दिया था कि कार्बन-दी-ओक्स्एड, कार्बन मोनो ओक्स्एड, मीथेन, नैत्रेश ओक्स्एड जैसे ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कम किया जाए । लेकिन इन सब का सम्बन्ध हमारे आधुनिक विकास से है । हम जीतने ही आगे बढ़ेंगे, जीतने विलास वस्तुओ के गुलाम होते जायेंगे कार्बन उत्सर्जन बदना ही बढना है। आप किसी को कहिये, तुम स्कूटर छोडकर साइकिल पर आ जाओ, क्या वह मानेगा ? हर आदमी स्कूटर से आगे कार के ही सपने देखता है । यही समाज का चलन है पश्चिम देश किस एक चीज पर इतराते है, और जिसकी वजह से उन्होंने बाकि दुनिया बढ़त बनायीं, वह औधौगिकीकरण हैऔधौगिकीकरण ने जो समाज बनाया वह इन सुविधाओ के बगैर नहीं रह सकताभरतीय हजारों वर्षों से कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था के साथ बढ़ाती रही, कभी ऐसा संकट नहीं आया कियोकि हम प्रकृति के विभिन्न उत्पादनों कि उसी तरह पूजा करते रहे है, जैसे इश्वर कि एक बार अपने प्रकृति को अपने से बड़ा समझ लिया, तो आप उसका शोषण कर ही नहीं सकते । जब कि उसे अपने भोग विलास कि दासी मानते ही आप उसका दोहन शुरू कर देते है । इसलिए आपकी विलासिता के लिए प्रकृति के दोहन पर आधारित औधौगिक सभ्यता में ३०० साल में ही धरती को विनास के कगार पर ला पटका

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