कियों बनता है कोई नक्सली ?
नक्सलियों की आपसी संजाल की बात करे तो देश के १५ राज्यों में बहुत ज्यादा सक्रिय है. उत्तर प्रदेश भी इससे बहुत ज्यादा अछुता नहीं है और यहाँ चंदौली-मिर्ज़ापुर के अलावा सोनभद्र सबसे अधिक प्रभावी है. इसके पीछे कार्ड है की सोनभद्र की सीमा बिहार, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश जैसे नक्सल प्रभावित राज्यों को कहती है, दंतेवाडा में हुई नक्सली घटना के बाद यहाँ भी चौकसी बढ़ा दी गई है और उ.प्र. पुलिस के नक्सल उन्मूलन प्रकोष्ट की हदे भी और ज्यादा व्यापक कर दी गयी है. सघन जंगलो में काम्बिंग और सूचना तंत्र के साथ तालमेल अब यहाँ जोर की बात हो गई है. बावजूद इसके प्रशासन कोई खतरा भी नहीं लेना चाहता. सोनभद्र सघन जंगलो में पुलिसे और पी एस सी के जवान अब आधुनिक हथियारों से लैस होकर और समय-समय पर नक्सलियों के विरुद्ध कार्यवाही करते रहते है. नक्सल समस्या आज राष्ट्रीय समस्या है इससे निपटने का कार्य सिर्फ केंद्र सरकार का ही नहीं बल्कि प्रभावित राज्य सरकारों का भी है. कुछ राज्यों ने सुरक्षा और अन्य प्रभावी योजनाओ के लिए तमाम कदम उठाये है लेकिन उ.प्र. सरकार अपने राज्य के सर्वाधिक नक्सल प्रभावित जिले सोनभद्र में ऐसी कोई कवायद शुरू करने के मुड़ में नहीं है. १९५० के बाद रिहंद बांध बनने के उपरांत सोनभद्र को उर्जांचल के रूप में विकसित किया जाने लगा साथ ही औद्योगिक विकास को लेकर कदम भी उठाये गए. ओबरा, अनपरा ताप विद्युत् परियोजना तथा एन टी पि सी, हिंडाल्को, जे. पी. सीमेंट. लैंको पावर सहित तमाम औद्योगिक प्रतिष्ठान सोनभद्र में स्थापित है बावजूद इसके गरीब आदिवासियों की जमीं अधिग्रहण करनी के बाद भी उनसे किये गए वायदे के अनुसार कुछ भी नहीं मिला. लिहाज़ा विश्थापित / आदिवासी आज अपने हक़ के लिए किसी भी हद तक जाने की बात कर रहा है. उ. प्र. सरकार नक्शल प्रभावित जिला सोनभद्र आदिवासियों को लेकर कितना संजीदा है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है की अनपरा "सी" बनने के लिए जिन आदिवासियों ने अपनी भूमि दी उन्हें नौकरी नहीं मिली और उस जमीन को लैंको पावर प्राइवेट लिमिटेड को लीज पर डे दी गयी. मिडिया द्वारा पूछे जाने पर उ.प्र. पावर कारपोरेशन के अधिकारी इसे शासनादेश बताते है. कुल मिलकर इस कहानी में कुछ ऐसे कटु अध्याय है जिसे देख कर देश के लोकतान्त्रिक स्वरुप को भी एक बार शर्म आएगी.
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